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Bana singh

“सियाचिन भारत के लिए अपरिहार्य है और इसके लिए कोई भी कीमत बहुत बड़ी नहीं है”

सियाचिन- इसको याद करते ही काराकोरम की ऊँची ऊँची चोटियां याद आती है, पृथ्वी पर सबसे ऊंचा और सबसे ठंडा युद्ध का मैदान, ठंड के दिनों में यहाँ का तापमान -60° C से भी नीचे चला जाता है। जहाँ की सर्द हवाएँ 50 KM/H की रफ्तार से भी तेज़ चलती ही रहती हैं। इस जगह पर किसी भी तरह की पौधे भी नही उड़ सकते। इतनी कठिन परिस्थितियों के बाद भी ये जगह सुरक्षा के दृष्टि से भारत के लिए बहूत ही महत्वपूर्ण स्थान है, ऐसे दुर्गम स्थान पे भी हमारी सुरक्षा के लिए मुस्तैद है बाना सिंह और उन जैसे ही अनगिनत भारतीय सेना के जवान।

1949 में जब भारत और पाक का कराची समझौता हुआ था, तब सियाचिन जम्मू-कश्मीर में उत्तर की तरफ खोर से लेकर दक्षिण में मनावर तक फैला हुआ था, अगर ऐसे देखा जाए तो ये ग्लेशियर NJ9842 के ठीक उत्तर-पूर्व में स्थित है। जहां भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा (LOC) समाप्त होती है। लेकिन आजादी के बाद से ही पाक हमेशा किसी न किसी तरीके से भारत के सीमा में घुसने की कोशिश करता रहा हैं।
1970 के दशक में, पाकिस्तान ने विदेशी पर्वतारोहियों और वैज्ञानिकों को सियाचिन ग्लेशियर पर आने के लिए परमिट देना शुरू कर दिया था, पूरी दुनिया को ये बताने के लिये की यह क्षेत्र पाकिस्तान के अंदर आता है। इसके बाद 1980 के दशक तक पाक ने अपने दावे को और ज्यादा मजबूत करने के लिए कुछ अवैध अतिक्रमण करना भी शुरू कर दिया। बात 1987 के समय की है पाक ने अपनी सेना को भारत के अंदर अपनी एक चौकी बनाने का आदेश दे दिया था। सेना ने चौकी को साल्टोरो रिज पर बिलाफोंड दर्रे के पास एक किले नुमा तरीके से बनाया, जिसके दोनों तरह 1500 फीट ऊँची बर्फ की दीवारें थीं, और इसका नाम उनके जनक ‘कायदे-आजम मोहम्मद अली जिन्ना’ के नाम पर ‘कायद चौकी’ रखा गया।

चौकी बनने के बाद पाकिस्तान अब पूरे ग्लेशियर और भारत की रक्षा चौकियों पर आराम से निगरानी कर सकता था। ग्लेशियर में मजबूत स्थिति में आने के बाद पाक ने सबसे पहले तोप से भारत की आपूर्ति लाइन को उड़ाया और भारतीय गश्ती दल पर हमला किया।
मई 1987 में, पाकिस्तानी सेना ने लेफ्टिनेंट राजीव पांडे और उनकी टुकड़ी के 12 और सैनिको पे हमला कर दिया इस अचानक हुए हमले में भारतीय सेना के केवल तीन जवान ही बच पाये। इसके एक महीने बाद, 8 JAK LI बटालियन के मेजर वरिंदर सिंह को कुछ चुने सैनिकों के साथ सोनम पोस्ट पर चढ़ाई करने की जिम्मेदारी दी गई थी। उनकी कंपनी ने चढ़ाई शुरू की, पर मौसम की स्थिति इतनी खराब थी कि वे 20 घंटों में सिर्फ 150 मीटर की खड़ी दूरी तय करने में कामयाब रहे। कंपनी को वापस लौटने के लिए कहा गया लेकिन सैनिकों ने पीछे नहीं हटने का फैसला किया। वहाँ पहुचने के बाद कई छोटी पार्टी को पोस्ट को हटाने और कब्जा करने के लिये भेजा गया, पर पाक की तरफ से आती गोलाबारी ने कई भारतीय सैनिकों को घायल कर दिया और कोई भी कायद पोस्ट तक नही पहुंच पाया। मिशन को कामयाब न होता देख नायब सूबेदार बाना सिंह ने खुद आगे बढ़ कर इस ऑपरेशन को पूरा करने की जिम्मेदारी ली।

मेजर वरिंदर सिंह ने उनके साथ 4 और सैनिकों को मुख्य हमले के लिए चुना और वो सभी के साथ मिल कर हमले की योजना बनाने में लग गए। योजना के अनुसार बटालियन के दूसरे सैनिक दुश्मन को उलझा कर रखेंगे और ग्लेशियर के दूसरी तरफ से बाना सिंह और उनके साथी चौकी की बर्फ़ीली दीवार पर चढ़ाई शुरू करेंगे। पहली मुश्किल जो उनका रास्ता रोक कर खड़ी थी वो थी ‘कायद पोस्ट’ की चिकनी और सीधी दीवार जिसपर चढ़ना बेहद कठिन और जोखिम भरा काम था। मौसम भी उनके सामने एक चुनौती बन कर खड़ा था क्योंकि जिस समय बाना सिंह अपने साथियों के साथ चौकी पे चढ़ाई कर रहे थे उस वक़्त ग्लेशियर का तापमान -30° C से भी कम था, पिछले कुछ दिनों से लगातार तेज़ हवाओं के साथ बर्फ भी गिर रही थी, और इतनी ठंड में बन्दूकों ने भी ठीक से काम करना बंद कर दिया। पर इतनी कठिन परिस्थितियों के बावजूद भी बाना सिंह और उनकी टीम अँधेरे में आगे बढ़ रही थी।

अंधेरे का फायदा उठा कर जैसे ही वो पोस्ट पर ऊपर पहुँचे, उन्होंने अपने टुकड़ी को दो हिस्सों में बटने का आदेश दिया, और फिर शरू हुआ ‘कायद पोस्ट’ को भारतीय सेना के नियंत्रण में लेने का ऑपरेशन, भारतीय सेना की टुकड़ी ने पाकिस्तानी बंकर पर फायरिंग शुरू कर दी और देखते ही देखते दोनों तरफ़ से गोलीबारी और ग्रेनेड से हमले होने लगे इस मुठभेड़ ने दुश्मन सेनिको को गंभीर रूप घायल कर दिया। सिंह ने मौका देखते ही पाकिस्तानी बंकर पर ग्रेनेड से हमला कर दिया और पाकिस्तानी सैनिक बंकर छोड़ कर भाग न पाए इसके लिए बंकर में ग्रेनेड फेकने के बाद बाना सिंह वही बंकर के दरवाजे पे मजबूती से डटे रहे, बाना सिंह के इस हमले में छह पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और बाकी बचे घुसपैठियों ने चौकी से भागकर अपनी जान बचाई, आपरेशन के खत्म होने के बाद पता चला कि घुसपैठ कर रहे सैनिक कोई और नही पाकिस्तान के स्पेंशल सर्विस ग्रुप (SSG) ‘शाहीन’ के कमांडो थे, जो इस अचानक हमले में मारे गए औ कुछ चौकी छोड़कर भाग निकले। इस नामुमकिन से लगते ऑपरेशन में बाना सिंह और उनके साथियों को किसी तरह की जानमाल की कोई क्षति नही हुई और इसतरह से भारतीय सेना ने ‘कायद चौकी’ को पाकिस्तानियों के कब्जे से भारतीय सेना के नियंत्रण में ले लिया था।

सिंह और उनकी बहादुर टुकड़ी की वजह से 26 जून, 1987 की शाम 5 बजे पाकिस्तान की कायद चौकी पर भारतीय ध्वज फहरा रहा था इसी के साथ भारत ने वो पोस्ट वापस जीत ली। बाद में सिंह के सम्मान में कायद चौकी का नाम बदलकर ‘बाना टॉप’ कर दिया गया, जो आज भी उन्ही के नाम से जाना जाता हैं।
अपने साहस और कुशल नेतृत्व के लिए, बाना सिंह को 1987 में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। 32 साल तक वो भारतीय सेना से जुड़े रहे और नए सैनिकों के लिए एक उदाहरण बने।