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Battle of Lahore, लाहौर, لاہور  The Indian Martyrs

Battle of Lahore, लाहौर, لاہور

10 सितंबर, 2340 बजे भारत की सेना ने लाहौर के ज्यादातर हिस्से पर कब्जा कर लिया। यह दिन इस बात का गवाह है जब पाकिस्तान में भारत का झण्डा लहराया था

‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ के विफल होने के बाद पाकिस्तानियों की योजना चरमरा गई थी क्योंकि इस ऑपरेशन में शामिल ज्यादातर पाकिस्तानी घुसपैठिए या तो मार गिराए गए थे या फिर भारतीय सेना की हिरासत में थे, पाकिस्तान ने घुसपैठियों को मुक्त करने के लिए चंब सेक्टर में “ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम” शुरू किया और इस ऑपरेशन के तहत उन्होंने भारतीय आपूर्ति लाइनों पर कब्जा कर के आपूर्ति को बाधित करने की योजना बनाई, जब “ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम” के कारण भारतीय आपूर्ति लाइनें बाधित हो गयी तो पाकिस्तान को उसकी ही भाषा में सबक सिखाने के उद्देश्य से 3 सितंबर, 1965 को भारतीय सेना मुख्यालय ने पंजाब सेक्टर में “आपरेशन लाहौर” शुरू कर दिया और इस ऑपरेशन के शुरू होते ही भारतीय सेना ने कश्मीर से पाकिस्तान का ध्यान हटाने के लिए युद्ध में दूसरे मोर्चे के रूप में लाहौर पर जबाबी कार्रवाई शुरु की।

लाहौर की लड़ाई
यह लड़ाई भारतीय सेना की 5 गोरखा राइफल्स, 18 कलवारी रेजिमेंट और पाकिस्तानी सेना के 17 पंजाब रेजिमेंट के बीच 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान बर्की में लड़ी गई, हरिके (पंजाब, भारत) से लाहौर तक की सड़क बर्की से होकर गुजरती थी, जो इछोगिल नहर के किनारे स्थित थी।

लाहौर की लड़ाई में भारतीय सेना का सामना ऐसे दुश्मनों से होने जा रहा था, जो नहर के किनारे खोदी गई खाइयों और बड़ी चट्टानों के पीछे छिपे हुये थे, “ऑपरेशन लाहौर” के तहत भारतीय सेना का उद्देश्य इछोगिल नहर के ईस्ट बैंक को सुरक्षित करने के बाद, अमृतसर-लाहौर, खलरा-बुर्की-लाहौर और खेम ​​करण-कसूर तीनों युद्ध क्षेत्रों पर एक साथ थ्रस्ट लॉन्च करना था।
7 इन्फैंट्री डिवीजन को बर्की पर कब्जा करने और इछोगिल नहर के पूर्वी तट पर दुश्मन को खदेड़ने का काम सौंपा गया इस प्राप्त उद्देश्य को पूरा करने के लिए भारतीय सेना का प्रारंभिक अभियान 6 सितंबर, 1965 को 0445 बजे शुरू हुआ और देखते ही सतलज रेंजर्स की चौकियों पर भारतीय सैनिकों ने कब्जा कर लिया। इस तरीके से अचानक किये गए हमले ने पाकिस्तानियों को संभलने का मौका तक न दिया और देखते ही देखते भारतीय सेना का खलरा के एक बड़े क्षेत्र पर कब्जा हो गया, खलरा वो इलाका था जो बुर्की से लाहौर की ओर जाने वाली सीधी सड़क पर स्थित है। इसके बाद जैसे ही भारतीय सेना की बटालियन बर्की के बाहरी इलाके में कब्जा जमाने पहुंची, यहाँ दुश्मनों ने भारी गोलाबारी और आटोमेटिक बंदूकों से उनका स्वागत किया, पर मामला संभालते हुए भारतीय सेना ने पाकिस्तानियो को वहाँ से भी भागने पर मजबूर कर दिया, भारतीय सेना के हमले की तीव्रता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि कई पाकिस्तानी सैनिकों ने हथियार छोड़ कर नहर में कूद कर अपनी जान बचाई।

बुर्की की हार के साथ ही पाकिस्तानी सेना ने अपने खोए हुए क्षेत्र पर फिर से कब्जा हासिल करने के लिए तीन तरफा पलटवार करने की योजना बनाई और इसके लिए पाकिस्तान ने अपनी सेना को इकट्ठा करना शुरू कर दिया, लाहौर की ज़मीन पर दोनो सेनाएं एक बार फिर आमने सामने थी, भारतीय सेना की तरफ से हो रही गोलाबारी के जवाब में पाकिस्तानियों ने अपनी सारी भारी तोपों को भारतीय सेना की दिशा में लगा कर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी और भारतीय सेना भी इस फ़ायरिंग का माक़ूल जवाब दे रही थी, दोनों ही पक्षों ने बुर्की और उसके नहर के आस पास के इलाकों में लगभग 2000 राउंड फायरिंग हुई, जिसका खामियाजा लाहौर के निवासियों को भी उठाना पड़ा क्योंकि कुछ गोले लाहौर पर गिरे जिसके कारण लोगो के बीच दहशत फैल गयी और हर तरह अफरा-तफरी का माहौल हो गया, पूरे लाहौर में ये चर्चे हो रहे थे कि बस किसी भी समय भारतीय सेना पूरे लाहौर को अपने कब्जे में ले लेगी।

8 से 10 सितंबर के बीच लगातार चलती रही गोलाबारी के कारण भारतीय सेना की गति धीमी तो हुई लेकिन पूरी तरह से नहीं रुकी, भारतीय सेना की धीमी गति को देखते हुए पाकिस्तानी ​​ने एक और हमला शुरू किया, जिससे बुर्की में फिर पाकिस्तानी टैंकों के साथ भारतीय पैदल सेना की झड़प शुरू हो गयी, भारतीय सेना केवल बुर्की को केवल कुछ समय तक अपने पास रखना चाहती थी, जब तक 18वीं कैवलरी रेजिमेंट टैंकों, हथियारों और आपूर्ति के साथ उस इलाके में पहुँच न जाये और भारतीय सेना इस काम को बख़ूबी निभाते हुए पाकिस्तानी सेना को पीछे धकेलने में कामयाब रही।

टैंकों की मदद से, भारत ने 10 सितंबर को मुख्य हमला किया और अधिकांश पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट कर दिया गया। सिर्फ चार भारतीय टैंकों को नष्ट करने के लिए 84 पाकिस्तानी टैंकों की जरूरत पड़ी। हालांकि, दुश्मन पीछे हटने से पहले नहर पर बने पुल को बुरी तरह से बर्बाद करने में कामयाब रहा था।

10 सितंबर, 2340 बजे भारत की सेना ने लाहौर के ज्यादातर हिस्से पर कब्जा कर लिया। यह दिन इस बात का गवाह है जब पाकिस्तान में भारत का झण्डा लहराया था, 11 सितंबर को भारत ने एक भयंकर युद्ध के बाद बर्की पर कब्जा कर लिया और भारत-पाकिस्तान युद्ध की पूरी अवधि के लिए इसे अपने पास रखा। बर्की पर कब्जा हो जाने के कुछ दिनों बाद भारतीय सेना लाहौर के और अंदरी इलाके डोगराई तक पहुँच गयी थी और अंततः भारतीय सेना ने 20 सितंबर को डोगराई पर भी कब्जा कर लिया, डोगराई पर कब्जा होने के बाद पुरा लाहौर शहर अब भारतीय टैंक फायर की सीमा के भीतर था।