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बेपरवाह लोगों के बीच, सुकून खोजती इमारत...

मेरे हिस्सें में सुकून कहाँ  – INDIA GATE

इस उँचाई से दिल्ली बिल्कुल अलग लगती हैं। एक शांति हैं, एक सुकून है पर मेरे हिस्से में नहीं।

रात का दूसरा पहर जब लोग सो कर उठने वाले हैं, तब भी मैं जाग रहा हूँ। मेरे जागने का कारण आप कहेंगे की सर्दी हो सकती है या हो सकता है मैं पहले ही अपनी नींद पूरी कर चुका होऊंगा। पर ऐसा है नहीं, क्योंकि आखिरी बार मैं सुकून कब सोया था, ये मुझे खुद याद नहीं। और जिस ठंड के बारे में आप सोच रहे है उस ठंड का होना न होना मेरे लिए एक ही बात है। मुझ में खुद एक लपट है एक आग हैं, आग का एक ऐसा स्वरूप है जो सब कुछ पवित्र कर सकता है। लेकिन मुझे शांति नहीं दे सकता। इस वक़्त मेरे जागने का कारण न तो ठंड है न ही कुछ और, मुझे फिक्र है बस उस बोझ की जिसे ले कर मैं खड़ा हूँ।

जब आपको मेरा नाम पता चलेगा तब आप ये सोचने लगेंगे, कि कही मेरे इस जागने का कारण मेरा नया पड़ोसी तो नहीं, हो सकता हो मुझे उससे जलन हो रही हो। पर आपको यकीन दिलाता हूँ ऐसा कुछ भी नहीं हैं। खुद की आग में इतना जल चुका हूं कि अब ये जलन महसूस ही नहीं होती।

मैं तो बस परेशान हूँ अपने नए पड़ोसी के लिए। उसको देख के मुझे अपने पुराने दिन याद आ गए। जब दिल्ली के दिल में जगह बनाए मुझे बस कुछ दिन ही हुए थे, लोग आते मुझसे मिलते और कुछ देर वैसे ही चुपचाप मेरे पास मौन खड़े रहते। मानो वो कह रहे हो कि हम तुम्हारा दर्द समझते है। ये लपट जो बाकी लोगों की नज़र में तुमको गर्मी दे रही है वो असल में तुम्हें अंदर से जला रही है। बाकी लोगों को लगता होगा की तुम जल नहीं सकते, तुम्हें तपन आंच ये शब्द के मायने क्या ही पता होंगे, पर हम जानते है ऐसा नहीं है वो सुकून जो तुम्हारे चेहरे पर दिख रहा है वो सच में सुकून नहीं बल्कि फिक्र है। वो रोशनी जिसको देख के हम मौन हो जा रहे उसको तो तुम अपने अंदर समेटे हुए हो।

लोगों का इतना भर भी सोच लेना मुझे थोड़ा सुकून देता था। शुरुआती दिनों में मैं दिल्ली के कुछ सबसे ऊंचे कद वालों में गिना जाता था। लेकिन मेरे कंधे पर रखा बोझ उन कुछ चुनिंदा लोगों को ही दिखता था, जो अपने जीवन में से समय निकाल कर मुझसे मिलने आते थे।

फिर वक़्त के साथ उन लोगों का आना भी कम होता गया। जो मुझे समझते, जो मेरे यहाँ सालों से खड़े रहने के मकसद को समझते , जो जानने की कोशिश करते कि आख़िर दूर से देखने पर शांत खड़ा दिखता मै क्या अंदर से भी उतना ही शांत हूँ, या मैंने भी वक़्त के साथ मुखौटा लगाना सीख लिया है। पर लोगों की व्यस्तता के बीच उनसे इतनी उम्मीद रखना भी मुझे ठीक नहीं लगता।

वैसे लोगों का आना खत्म तो नहीं हुआ है। लोग आज भी आते है मुझे देखते है, फिर हँसते हुए मेरे साथ एक फोटो लेना नहीं भूलते। पर लोगों की ये हँसी मुझे चुभती है। ऐसा लगता है जैसे ये हँसी मुझसे ये प्रश्न करती है, कि तुम आज भी यहाँ क्यों खड़े हो, वो सुकून और खुशी जो हममें दिख रही है वो तुममें क्यों नहीं दिखती। लेकिन फिर मुझे लगता है की लोगों की खुद की हँसी उनके लिए खुद एक प्रश्न है कि किस बात की खुशी मना रहे हो तुम मेरे सामने। तुम्हें पता भी है कि मेरा इतिहास क्या है और मैं यहां धूप पानी तूफ़ान सब कुछ झेल कर भी क्यों खड़ा हूँ। ऐसा क्या बदल गया इन सालो में की अब मुझे देख कर तुम्हारे चेहरे पर गंभीरता नहीं बल्कि हँसी है पर क्या करूँ इस प्रश्न को मैं उनसे पुछ भी तो नहीं सकता। और बिना पूछे उत्तर की उम्मीद करना भी कहा तक सही है इसलिए मैं बस खड़ा हूँ अपने अंदर सब कुछ समेटे हुए…

अब आप लोगों को लगेगा कि अचानक से मैं ये सारी बातें क्यों कर रहा हूं और आपका सोचना भी बिल्कुल सही है। पर जब से मेरा नया पड़ोसी आया है मैं फिर से कुछ वैसे ही पुराने चेहरे देख रहा हूँ, जो उसके और मेरे पास आ कर हँसते नहीं है, जो आज भी फोटो लेने से ज्यादा इस बात को समझने की कोशिश करते है कि मैं या मेरा नया पड़ोसी दोनों आख़िरी यहां क्यों है और ऐसे ही चेहरे मुझे अच्छे भी लगते है। बस, डर है इन चेहरे का फिर उसी भीड़ में खो जाने का जो समझने महसूस करने से ज्यादा फोटो लेने के पीछे भागते है, जो हर चीज को बिना समझने बस कैमरे में कैद कर लेना चाहते हैं।

मैं इन चेहरे को फिर से उस भीड़ का हिस्सा बनते नहीं देख सकता और मैं वक़्त के इस बदलाव को वापस से झेल भी जाऊँ तो क्या मेरा नया पड़ोसी इस बदलाव के लिए तैयार है भी या नहीं वो सुकून जो उसके चहरे पर दिख रहा है मैं उस सुकून को खोते हुए नहीं देख सकता । अब तो आप समझ गए होंगे कि मेरी नींद क्यों ग़ायब है। मैं इस बदलाव से नहीं बल्कि इसके बाद आने वाले बदलाव से चिंतित हूँ।

अब तक तो आप मेरा नाम जान ही गये होंगे और साथ ही ये भी जान गए होंगे कि मैं सिर्फ दिल्ली में ही नहीं, बल्कि भारत के हर राज्य और हर ज़िले में हूँ। उम्मीद है, अगली बार जब मुलाकात होगी तब आप मुझे समझने की कोशिश करेंगे।

हाँ और एक बात, वो ये की इस गंभीरता को सिर्फ मेरे नाम तक ही सीमित मत रखियेगा। अगली बार आप जब भी अपने राज्य या जिले में मौजूद मेरे किसी भाई से मिलने जाए तो उनसे भी ऐसे ही मिले, उन्हें भी आपका इंतजार हैं।