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Nirmal jit singh folland flying gnat

14 दिसम्बर 1971 बेस में बजती सायरन की आवाज़ तेज़ होती जा रही थी। जब तक कोई कुछ समझ पाता, सायरन की आवाज़ धमाकों की आवाज़ में कही खो गयी। आसमान पाकिस्तानी सेबर एयरक्राफ्ट की गड़गड़ाहट से गूँज रहा था।

ये सब इतने तेज़ी से हुआ कि किसी को कुछ समझने का मौका ही न मिला। अगले ही पल हम मौत को चकमा देते हुए श्रीनगर की हवाईपट्टी पे दौड़ लगा रहे थे और थोड़ी देर बाद श्रीनगर का खुला नीला आसमान हमारे साथ उड़ रहा था, साथ ही उड़ रहे थे पाकिस्तानी सेबर फाइटर एयरक्राफ्ट। चार पाकिस्तानी सेबर फाइटर एयरक्राफ्ट हमारे सामने थे और कुछ देर में हमारे बीच वो खेल शुरू होने वाला था जिसका अंत किसी एक की मौत पे ही रुकता। कभी पाकिस्तानी हमारे निशाने पर आते और कभी हम पाकिस्तानी एयरक्राफ्ट के निशाने पर। इस आँख मिचौली के बीच ही एक सेबर मेरे निशाने पे लॉक हो चुका था। मेरे ट्रिगर का दबना और उस सेबर के परखच्चे उड़ने के समय मे बस ज़रा सा ही फासला रहा होगा और इसी के साथ एक सेबर एयरक्राफ्ट कश्मीर की धरती पे पड़ा हुआ था। उससे उठता काला धुंआ कश्मीर की उन बर्फ से ढकी हसीन वादियों में बड़े आसानी से नज़र आ रहा था। हम इस जीत के जश्न को मना ही रहे थे, कि तभी मेरे साथ उड़ रहे साथी पे पाकिस्तानी एयरक्राफ्ट ने गोलियों की बौछार कर दी। मेरे साथ उड़ रहा मेरा साथी देखते ही देखते मुझसे दूर होता जा रहा था और कुछ देर बाद वो मेरी नज़रो से ओझल हो गया।

कंट्रोल रूम से कन्फर्म मैसेज मिलने के बाद अब ये निश्चित हो गया था कि मेरा साथी वीरगति को प्राप्त हो चुका है। मुझे याद है, कंट्रोल रूम का वो आखिर मैसेज जिसमे हमे बार बार बेस पर वापस आने के लिए बोला जा रहा था, लेकिन शायद अब वापस जाना मुश्किल था या यूँ कहे की मुश्किल से ज्यादा ज़मीर को ऐसा करना गवारा न था।
वो एक लाइन जो उस वक़्त मुझे बार बार याद आ रही थी वो थी “नभः स्पर्श दिप्तम” और सच में हम उस वक़्त बड़े गर्व के साथ ही आसमान को छू रहे थे। ये गर्व था उस साथी के शहादत का जिसने सर्वोच्च बलिदान दिया था।

अगले ही पल वापस से आँख मिचौली का वो खेल शुरू हो गया। सेबर एयरक्राफ्ट तेज़ी से मेरे सामने से होते हुए पाकिस्तान की तरफ वापस भाग रहे थे। अब दो ही विकल्प हमारे सामने बचे थे, या तो उन्हें भागने देते या फिर उनका पीछा करते। थोड़ी ही देर में हम पीछा करते करते पाकिस्तानी सीमा में दाख़िल हो चुके थे। गोलियों की तड़तड़ाहट से पाकिस्तान का आसमान काँप रहा था। गोलियां और हमारे बीच की दूरी धीरे-धीरे कम होती जा रही थी।

तभी मेरे सामने उड़ रहे सेबर ने अस्ग्नक से हवा में गोता लगाए, उसके पीछे हमने भी गोते लगाए और वो मेरे निशाने पर आने ही वाला था कि तभी ऊपर की तरफ से दो छुपे हुए सेबर ऐरक्राफ्टो ने अचानक मुझ पर एकसाथ हमला कर दिया। लड़ाई तीन पाकिस्तानी ऐरक्राफ्ट और एक भारतीय ऐरक्राफ्ट से पांच पाकिस्तानी और एक भारतीय ऐरक्राफ्ट की हो चुकी थी। पांच एक की इस लड़ाई में मुझे उड़ा रहे थे भारतीय एयर फोर्स फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों। सेबर स्लेयर का वो खिताब जो आजतक मेरे साथ है वो खिताब और मुझमे बस एक सेबर की दूरी बची थी। लेकिन आज का दिन मुझे सेबर सल्येर के साथ ही एक और ख़िताब दिलवाने वाला था|

मेरे सामने उड़ रहे सेबर के लिए आज का दिन उतना खुशनसीब न था। लॉक लगते ही मैंने फायर किया और इसके साथ ही दूसरा सेबर ऐरक्राफ्ट भी दुश्मन के इरादों की तरह ज़मीन पर गिरा हुआ था। हमारा उत्साह दुगना हो चुका था और हम तीसरे सेबर ऐरक्राफ्ट पे लॉक लगने ही वाले थे, कि तभी पीछे की तरफ से आती गोलियों ने मेरे टेल और इंजन को हिट किया, ज़मीन तेज़ी से हमारे क़रीब आने लगी, निर्मल जीत सिंह ने मुझे संभाले की बहुत कोशिश की पर इंजन में लगी आग ने मुझे बेकाबू कर दिया था। ज़मीन और हमारे बीच अब कुछ ही दूरी बची थी और निर्मल जीत सिंह के पास सीट इजेक्ट करने के अलावा कोई और विकल्प न था। उन्होंने इजेक्ट किया और इसके साथ मैं और निर्मल जीत सिंह अब अलग अलग जमीन की तरफ बढ़ रहे थे। मेरी टेल में लगी आग मेरे फ्यूल टैंक तक पहुँच गयी। उस आखिरी धमाके से पहले जितना मुझे याद है निर्मल जीत सिंह सेखों मेरी नज़रों से ग़ायब हो चुके थे।

”युद्ध मे अद्भुत कौशल और सर्वोच्च बलिदान के लिए उन्हें भारत के सर्वोत्तम वीरता पदक परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया ”

– भारतीय विमान फॉललैंड GNOT